
क्या आपने कभी सुना है किसी जज को फाँसी की सजा मिलते हुए|
दोस्तों, किसी अपराधी को जज द्वारा फांसी की सजा दिए जाने की बातें तो आपने बहुत सुनी और देखी होंगी लेकिन किसी जज को फांसी पर लटकाया गया हो ऐसा कभी सुना है आपने? जी हाँ, आज से 44 साल पहले यानी साल 1976 में एक जज को फांसी पर लटकाया गया था । इस जज का नाम था उपेंद्र नाथ राजखोवा। यह असम के ढुबरी जिले से थे और एक सेशंस कोर्ट के जज के पद पर तैनात थे और उन्हें सरकारी बांग्ला भी मिला हुआ था फरवरी 1970 में वो रिटायर तो हो गए लेकिन वो अपना सरकारी बंगला खाली नहीं कर रहे थे इसी बीच उनकी पत्नी और तीन बेटियां अचानक गायब हो गईं।
जब भी उनसे कोई पूछता कि उनका परिवार कहां है तो वह कुछ न कुछ बहाना बना देते। फिर अप्रैल 1970 में उपेंद्र नाथ राजखोवा सरकारी बंगला खाली करके चले गए लेकिन वो कहाँ गए किसी को पता नहीं था चूंकि राजखोवा के साले यानी उनके पत्नी के भाई पुलिस में थे उन्होंने पता लगाया कि राजखोवा सिलीगुड़ी के एक होटल में कई दिनों से ठहरे हुए हैं। इसके बाद कुछ पुलिसकर्मियों के साथ वो उस होटल गए और उनसे अपनी बहन और भांजियों के बारे में पूछा। जब कोई बहाना नहीं चला तब राजखोवा ने पुलिस के सामने ये कबूल किया कि उन्होंने ही अपनी पत्नी और तीनों बेटियों की हत्या की है और उन चारों की लाश को अपने उसी सरकारी बंगले में जमीन में गाड़ दिया है।
इसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। लगभग एक साल तक केस चला और अदालत ने उपेंद्र नाथ राजखोवा को फांसी की सजा सुनाई । और फिर 14 फरवरी 1976 को जोरहट जेल में पूर्व जज उपेंद्र नाथ राजखोवा को उनकी पत्नी और तीन बेटियों की हत्या के जुर्म में फांसी दे दी गई। और दोस्तों इस तरह उपेन्द्रनाथ राजखोवा वो इकलौते जज बने जिन्हे फांसी की सजा मिली हो। यही नहीं कहते हैं कि पूरी दुनिया में भी ऐसा कोई और जज नहीं रहा जिसे हत्या के जुर्म में फांसी की सजा हुई हो।