
कैसे पाकिस्तान में गुम हो रही है पंजाबियों की पंजाबी!!
दोस्तों मातृभूमि और मातृभाषा के लिए जो हमारा प्यार होता है वो हम शब्दों में जाहिर नहीं कर सकते, हम दुनिया के किसी भी कोने में चले जाएं कितनी भी भाषाएं सीख लें, लेकिन जो मजा अपनी मातृभाषा को बोलने में आता है वो किसी और भाषा में नहीं आता। और इसलिए अक्सर लोग अपने बच्चों को भी अपनी मातृभाषा से भी जोड़े रखना चाहते हैं। सरकारें स्कूल में सब्जेक्ट के तौर पर क्षेत्रीय भाषाओं को पढ़ाती है कविताओं कहानियों और फिल्मों के जरिए Mother Tongue के रस को जिंदा रखा जाता है, पर दोस्तों जहां दुनियाभर के देश अपनी मातृभाषा को पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाने के लिए जोर देते हैं वहीं एक देश ऐसा है जिसने अपनी मातृभाषा को ही बैन किया हुआ है, यहां के लोगों को अपनी भाषा से प्यार तो है पर पब्लिकली अपनी मदर टंग में बोलने में शर्म आती है, इस देश में आपको एक भी बैनर, अखबार, या न्यूज चैनल इनकी मातृभाषा में नहीं मिलेगा। अब आप भी सोच रहे होंगे कि भला ऐसा कौन सा देश है जो अपनी मातृभाषा में बोलने में, पढ़ने में शर्म महसूस करता है तो दोस्तों दिमाग पर जोर डालने की ज्यादा जरुरत नहीं है क्योंकि ये देश कोई और नहीं बल्कि पाकिस्तान है, जहां के 50 प्रतिशत लोगों की मातृभाषा पंजाबी है पर, मजाल है कि यहां आपको पंजाबी में कोई न्यूज चैनल, कोई अखबार या कोई बैनर मिल जाए…….पंजाबी भाषा का जन्म यहीं हुआ लेकिन फिर भी पाकिस्तान की ऑफिशियल लंग्वेज उर्दू और इंग्लिश है। और यहां के सारे काम भी इन दोनों भाषाओँ में ही होते है, आम भाषा में बोले तो उर्दू-इंग्लिश से मोहब्बत लेकिन पंजाबी से सौतेलापन… पर क्यों ? मन में सवाल आपके भी कई होंगे…जिनके जवाब मिलेंगे आपको सिर्फ यहां Factified Special में…जहां आज हम आपको बताएंगे कैसे पाकिस्तान में गुम हो रही है पंजाबियों की पंजाबी ? हर तर्क और Fact के साथ ……..
पंजाब और पंजाबी का इतिहास
पाकिस्तान के पंजाबियों को समझने के लिए दोस्तों जरा फ्लैशबैक में जाते हैं । पंजाब यानी की पांच नदियों का मिलन और वो नदियों है – झलेम, चेनाब, रावी, शतलुज और ब्यास….आजादी से पहले दोस्तों पंजाब के पांच प्राशसनिक केंद्र थे – जलंधर, लाहौर, रावलपिंडी, मुल्तान और दिल्ली….और ये वही क्षेत्र थे जहां पंजाबी भाषा का जन्म हुआ था .
दोस्तों शायद आपको ये जानकर थोड़ी हैरानी हो कि पंजाब के अस्तित्व में आने से पहले पंजाबी भाषा अस्तित्व में आ चुकी थी…..भारत के इस इलाके में बसे मुस्लिम फारसी और अरबी लहँदी की मिश्रित भाषा बोला करते थे और इसी तरह पंजाबी भाषा का जन्म भी हुआ । इस रिजन में पैदा हुआ कवियों, शायरों ने इस भाषा का इस्तेमाल 13वीं सदी से ही करना शुरु कर दिया था । सूफी संत Fariduddin Ganjshakar उर्फ Baba Farid ने सबसे पहले परशियन स्क्रिप्ट का यूज करके पंजाबी में लिखना शुरु किया इसके बाद Shah Hussain, Bahu Shah, Bulleh Shah और Waris Shah ने इस पंरपरा को जारी रखा था। पर अभी भी तक इस भाषा को कोई नाम नहीं मिला था…1670 में पहली बार इस भाषा के लिए “पंजाबी” शब्द का इस्तेमाल हुआ जिसे इस्तेमाल किया था कवि हाफिज़ बरखुदार ने.…वहीं 16वीं सदी मे जब गुरु नानक ने सिख धर्म की स्थापना की तो पंजाबी को अपनी आम बोलचाल की भाषा चुना और गुरमुखी को इसकी लिपी ।
महराणा रंजीत सिंह की हत्या के 10 साल बाद 1849 में ब्रिटिश ने लौहर पर कब्जा कर लिया था और ये वही समय था जब लहौर में पंजाबी भाषा का पतन शुरु हुआ। ब्रिटिशस ने उर्दू को सरकारी दफ्तरों में ऑफिशियल लंग्वेज के तौर पर चुना । 19वीं सदी से पहले भाषएं क्षेत्रों की पहचान थी पर 19वीं सदी में ब्रिटिशस की कूटनीतिओँ ने लोगों को हर चीज में बांटना शुरु कर दिया..और फिर भाषाएं भी धर्मों और समुदायों से जोड़ी जाने लगी । हिंदूओं का झुकाव हिंदी और संस्कृत की तरफ था तो मुस्लिमों का उर्दू की तरफ और सिखों का पंजाबी भाषा की तरफ…और इन सब पीसने लगे वो लोग जो क्षेत्रीय आधार पर इन भाषाओं का इस्तेमाल किया करते थे जब पाकिस्तान इस्लामिक कंट्री बना तो बिना जनता का मत जाने जिन्ना ने उर्दू को नेशनल लेंग्वेंज घोषित कर दिया और पंजाबी को भुला दिया गया। जो कि उस क्षेत्र की मातृभाषा थी
बंटवारे ने खत्म किया पाकिस्तान में पंजाबी का अस्तित्व ?
दोस्तों 14 अगस्त 1947 की वो आधी रात, जब भारत पाक का बंटवारा हुआ….इस बंटवारे में दोनों देशों ने बहुत कुछ खोया पर दोस्तों किसे पता था कि इस बंटवारे में पाकिस्तान अपनी मातृभाषा भी खो देगा… दोस्तों बंटवारे की आग पूरे देश में फैली थी । हर कोई अपने पसंदीदा मुल्क की तरफ पलायन करने लगा…पर असली मार तो पड़ी पंजाब और बंगाल पर। पंजाब का आधा हिस्सा भारत को मिला और आधा पाकिस्तान को । ऐसा ही कुछ हाल बंगाल का भी था । पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान को एक इस्लामिक देश घोषित किया गया जिसकी राष्ट्र भाषा बनी उर्दू। पर दोस्तों पाकिस्तान को इस्लामिक कंट्री घोषित करने वाले लोग ये भुल गए कि उनकी आधा जनता पंजाबी है और आधी जनता बंगाली । जिन्हें उर्दू में दो शब्द लिखना तो दूर बोलना भी नहीं आता । पर जनता के बारे में सोचता कौन है । पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान में बंटवारे के बाद से ही मतभेद शुरु हो गया। जिसकी वजह मातृभाषा ही थी,
24 जनवरी 1948 को Dhaka University’s convocation में मोहम्मद अली जिन्ना ने एक स्पीच दी जिसमें उन्होंने कहा कि “मेरे मुताबिक पाकिस्तानियों की ऑफिशियल लंग्वेज जो लोगों के बीच Communication का जरिया बनेगी वो सिर्फ उर्दू है” दोस्तों जिन्ना की ये स्पीच पाकिस्तान में पंजाबी और बंगाली भाषा के पतन का इशारा थी, क्योंकि जिन्ना भुल गए कि उनकी आधे से ज्यादा जनता पंजाबी और बंगाली बोलती है और बाकी बची परशियन। फिर ये कौन सी जनता थी जिनकी भाषा को वो अपनी मातृभाषा चुन रहे थे ।
जिन्ना के इस स्टेटमेंट ने पूर्वी पाकिस्तान में आग का काम किया और पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तानी में शुरु हो गया अंदुरुनी मतभेद…..और फिर हुआ 1971 का युद्ध, जिसमें भारत की मदद से पूर्वी पाकिस्तान अलग हो गया और बांग्लादेश बन गया। इस तरह बंगाला भाषियों को एक अलग राष्ट्र भी मिल गया और उनकी भाषा और कल्चर भी बच गए। पर पश्चिमी पाकिस्तान ऐसा नहीं कर पाया।
क्यों कि वो सिर्फ मिर्जा गालिब और मीर को अपनी धरोहर मान रहा था और उसी मिट्टी में जन्मे बुले शाह और रंजीत सिंह की यादों को बंटवारे में जला चुका था
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सिर्फ 7 प्रतिशत जनता बोलती है उर्दू
दोस्तों अब आप कहेंगे कि भारत में भी तो हिंदी भाषा को लिखने पढ़ने बोलने के लिए सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है पर दोस्तों हिंदी भारत की नेशनल लेंग्वेज नहीं है , हिंदी के साथ-साथ 22 और भाषाओं को सविंधान में जगह मिली । लेकिन पाकिस्तान की कहानी अलग थी । पाकिस्तान की ऑफिशियल लंग्वेज उर्दू को चुना गया जो सिर्फ पूरे देश के 6-7 प्रतिशत लोगों की मातृभाषा है वहीं ऑफिशियल लंग्वेज के तौर पर उर्दू के अलावा पाकिस्तान ने अग्रेंजी को अपनी भाषा चुना। जबकि 37 प्रेसेंट पाकिस्तानी आज भी घरों में पंजाबी बोलते हैं
पाकिस्तान और भारत के पंजाब में फर्क
1947 में जब बंटवारा हुआ तो 56 प्रतिशत पंजाब पाकिस्तान को मिला और 44 प्रेसेंटे पंजाब भारत के हिस्से में आया…
पाकिस्तान का पंजाब रावलपिंडी, गुजरनवाला और मुल्तान से लेकर लाहौर तक फैला है….जबकि भारत के पंजाब के आजादी के बाद और विभाजन हुए और पंजाब के अलावा हरियाणा और हिमाचल प्रदेश राज्य बने। भारत के पंजाब में आज भी पंजाबी बोली जाती है और यही नहीं गुरमुखी भारत की ऑफिशियल लंग्वेंजस में से एक भी है ….पर पाकिस्तान जहां पंजाबी भाषा का जन्म हुआ वहां ये भाषा वहां लुप्त हो रही है
दोस्तों पाकिस्तानी पंजाब की कुल जनंसख्या 11 करोड़ है जिसमें 97 प्रेसेंट पंजाबी मुस्लिम है…और बाकी सिख है जो यहां माइनोरिटी में है। पाकिस्तानी पंजाबी पाकिस्तान का 60 प्रेसेंट जीडीपी कवर करते है…पर अपनी भाषा को अपने घर से बाहर ले जाने में शर्माते हैं।
आजादी के बाद पंजाबियों ने पाकिस्तानी राज्यों और सोसाइयटी को खूब डोमिनेंट किया..साहित्य से लेकर सिनेमा…खेल से लेकर पॉलिटिक्स हर जगह पंजाबियों ने अपनी छाप छोड़ी पर फिर भी पाकिस्तान में पंजाबी को भाषा का दर्जा नहीं दिला पाए। अब इसमें दोष उनका था या सरकार के ऊंचे पदों पर बैठे उन लोगों का जो उर्दू भाषी थे और शायद ऐसा इसलिए भी था क्योंकि एक लोकतांत्रित देश होने के बावजूद भी पाकिस्तान अपने अधिकार का सही ढंग से इस्तेमाल नहीं कर पाया, यहां सरकारें जनता की कम अपनी आकाओ की ज्यादा सुनती है….पिछले 75 सालों में पाकिस्तान कई बार तख्तापलट देख चुका है और आज भी सिर्फ नाम के लिए यहां सरकारें बनती है।
यकीन नहीं आता तो पाकिस्तान के मौजूदा प्रधानमंत्री इमरान खान का बायो देखो लीजिए वो भी पाकिस्तान के पंजाब से ही आते हैं और उनकी मदर टंग भी पंजाबी ही है, लेकिन उन्होंने भी पंजाबी को बचाने के लिए कुछ नहीं किया ।
पाकिस्तान Cenus Report 2017
Vo 10 – दोस्तों अब आप सोच रहे होंगे कि बंटवारे को तो इतने साल हो चुके हैं अब तो पाकिस्तान में सब उर्दू ही बोलते होंगे लेकिन दोस्तों ऐसा नहीं है, ऑफिशियली पंजाबी पाकिस्तान से गुम हो चुकी है, लेकिन पाकिस्तान के घरों में पंजाबी आज भी जिंदा है। दोस्तों पाकिस्तान की 2017 की Cenus Report कहती है कि पाकिस्तान में 38 प्रेसेंट लोग पंजाबी बोलते हैं…18 प्रेसेंटे परशियन, 14 प्रेसेंट सिंधी, 12 प्रेसेंट saraiki, 7 प्रेसेंट उर्दू , 3 प्रेसेंट बलूची और 6 प्रेसेंट दूसरी भाषा बोलते हैं । यानी की आम भाषा में कहें तो दोस्तों पाकिस्तान में सिर्फ 7 प्रतिशत लोग ऐसे हैं जिन्हें अपनी नेशनल लेंग्वेज उर्दू आती है और दोस्तों देखा जाए तो ये रिपोर्ट इशारा है कि अभी भी पाकिस्तानियों के पास मौका है अपनी मातृभाषा पंजाबी को बचाने का ।
पंजाबी भाषा के लिए आवाज क्यों नहीं उठाते लोग
दोस्तों अब आप सोच रहे होंगे कि अगर पाकिस्तान में पंजाबी गायब हो रही है तो लोग आवाज क्यों नहीं उठाते। दोस्तों पिछले कई सालों से पाकिस्तान में पंजाबी भाषा के अस्तित्व को बचाने के लिए कई कोशिशें हुई
1989 में कुछ लोगों ने पाकिस्तान में साजन नाम से पंजाबी में एक डेली न्यूजपेपर शुरु किया था…ये पाकिस्तान का पहला पंजाबी न्यूजपेपर था लेकिन ये अखबार महज 20 महीने ही चल पाया । दोस्तों ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि सरकार और प्राइवेट सेक्टर्स ने इस न्यूजपेपर को फंड करने से इंकार कर दिया था ।
1990 तक पाकिस्तान की पंजाब एसम्बली में पंजाबी में बोलना भी मना था लेकिन इस बैन को राइटर Hanif Ramay ने कुछ वक्त के लिए हटा दिया जो उस समय पंजाब एसम्बली के स्पीकर हुआ करते थे। लेकिन कुछ वक्त बाद ये बैन दोबारा लगा दिया गया दोस्तों पाकिस्तान की संसद तक में ये मुद्दा उठ चुका है कि पंजाबी को एक भाषा का दर्जा दिया जाए स्कूल में एक सब्जेक्ट के तौर पर शामिल किया जाए पर संसद में उठी आवाज सिर्फ संसद में ही दब कर रह गर्ई ।
इस साल इंटरनेशनल मातृभाषा दिवस के मौके पर पाकिस्तान में एक जुलूस भी निकाला गया जिसमें पाकिस्तान मजदूर किसान पार्टी, बॉन्डेड लेबर लिबरेशन फ्रंट, आल पाकिस्तान ट्रेड यूनियन फेडरेशन, पंजाब प्रोफेसर्स एंड लिटरेचन एसो. और अन्य संगठन शामिल थे । इन लोगों का साफ कहना था कि हम पर एक विदेशी भाषा थोपी गई है । पंजाबी भाषा के लिए लड़ रहे लोगों का ये भी कहना था कि उनके बच्चे पहले किसी बारे में पंजाबी भाषा में सोचते हैं फिर उसे उर्दू में ट्रांसलेट करते हैं और फिर अंग्रेंजी में । इसे बच्चों पर बोझ बढ़ता है और बच्चों को सीधा उर्दू और अंग्रेंजी सीखाएं तो वो पंजाबी नहीं बोल पाते
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गुम होती पंजाबी पर चुप है पंजाबी मुस्लिम ?
दोस्तों देखा जाए तो पाकिस्तान में गुम होती पंजाबी का एक कारण ये भी है कि पाकिस्तान में सिख समुदाय minority में आता है जो पंजाबी बोलता है, वहीं पंजाबी मुस्लिम minority में तो नहीं है पर ज्यादातर पंजाबी मुस्लिम अब उर्दू को ही अपनी मातृभाषा मान चुके हैं और अब इन्हें पंजाबी कभी कभार यार दोस्तों में ही याद आती है । उर्दू और अंग्रेजी को पाकिस्तान में एक स्टेटस सिंबल के तौर पर भी देखा जाता है और पंजाबी लोगों को बैकवर्ड फिल कराती है जिस वजह से भी ज्यादातर लोग पंजाबी के हक में आवाज नहीं उठाते
क्या उर्दू का नेशनल लेंग्वेज होना है समस्या ?
दोस्तों शायद आप में से कइयों को अब ये लग रहा हो कि क्या उर्दू का नेशनल लेग्वेंज होना समस्या है पर दोस्तों ऐसा नहीं है क्योंकि कई देशों में ये समस्या देखने को मिल चुकी है कि कोई ना कोई एक वर्ग नेशनल भाषा से अनजान होता है टर्की जैसे कई देश है जहां उनकी नेशनल लेंग्वेज के अलावा भी दूसरी भाषा वाले लोग भी काफी है..पर जहां इन देशों ने इस समस्या का समाधान बाकी भाषाओं को भी दर्जा देकर निकाला है वहीं पाकिस्तान उर्दू और अंग्रेंजी के अलावा किसी और भाषा को अपनी ऑफिशियल लंग्वेंजस में शामिल नहीं करना चाहता
दोस्तों किसी भाषा का गुम होना किसी पंरपरा किसी सभ्यता के गुम होने की निशानी होता है। ऐसे में आपको क्या लगता है क्या अपनी ही Cultural Root से नाता तोड़ना वाजिब है कमेंट करकें बताइए…और post पंसद आया हो तो लाइक शेयर करना ना भूलें..अगले हफ्ते फिर हाजिर होंगे ऐसे ही किसी मुद्दे के साथ जो चर्चा में तो है लेकिन जिसकी Reality से जनता अनजान है….