भारत की आजादी
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आजादी के बाद रियासतों का विलय कैसे हुआ था?

साल 1947 ब्रिटिश पार्लियामनेट मे इंडिया इंडिपेंडेंस ऐक्ट पास हुआ इस एक्ट के तहत ब्रिटिश भारत दो स्वतंत्र देशों मे बांटा गया। हिंदुस्तान और पाकिस्तान। जिसके बाद लॉर्ड माउंटबेटन गवर्नर जनरल के रूप मे काम करते रहे और पंडित जवाहरलाल नेहरू स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री बने।

15 अगस्त तक भारत और पाकिस्तान दोनों अलग राष्ट्र बन चुके थे अब बारी थी स्वतंत्र रियासतों की। उस समय करीब 565 देशी रियासते थे। । इन रियासतों को तीन ऑप्शन दिए गए । पहला या तो ये भारत और पाकिस्तान मे से किसी एक का हिस्सा बन जाए या फिर आज़ाद रहे। भारत मे देशी रियासतों को एक साथ लाने का काम पटेल को दिया गया और शायद ये काम उनसे बेहतर कोई और कर भी नहीं सकता था। उस समय पटेल भारत के रियासत मंत्रालय के प्रमुख होने के साथ साथ देश के गृह मंत्री भी थे। पटेल न होते तो आज भारत न जाने कितने देशों मे बटा हुआ होता। अगर ऐसा होता तो आज हम गुरुग्राम से नोएडा जाने के लिए भी इंटरनेशनल फ्लाइट्स बुक कर रहे होते। और नई दिल्ली से बिहार जाने के लिए न जाने कितने देशों को क्रॉस करके जा रहे होते।

पटेल को जो काम सौपा गया था वो काम उन्होंने बखूबी किया और इनके इस काम मे उनका साथ दिया वी. पी. मेनन जो उस समय रियासती विभाग के सदस्य सचिव थे। पटेल लगभग सारी रियासतों को एक साथ लाने मे कामयाब रहे बस दिक्कत हुई तो जूनागढ़ हैदराबाद जैसी रियासतों को एक करने मे।

आजादी के बाद का भारत:

कुछ रियासते ऐसी थी जो जमीनी तौर पर तो भारत में रहना चाहती थी लेकिन पाकिस्तान की होकर तो कुछ ऐसी जो आज़ाद रहना चाहती थी। पटेल ने बड़ी ही समझदारी से उन्हें समझाया जो लोग तुमहराई रियासतों मे है उन्होंने स्वतंत्रता की लड़ाई मे भाग ये आजादी चुनी है आज अगर तुम उन्हें आज़ाद न कर राजशी राज चलाने की सोचोगे तो जनता कल तुम्हारे खिलाफ भी बगावत करेगी और तुम्हारी रियासत का कोई वजूद नहीं रहना ऐसे मे बेहतर यही होगा कि आकर भारत की साइड हो जाओ।

ये तो थी पटेल कैसे आम रियासतों को एक साथ लेकर आए लेकिन अब हम आपको उन रियासतों के बारे मे बताएंगे जिन्हें भारत के साथ लाना मुमकिन ही नहीं नामुमकिन सा लग रहा था।

सबसे पहले बात करते है त्रावणकोर की। ये वो रियासत है जिसने 1946 मे ही भारत मे मिलने से साफ मना कर दिया था। कहा जाता है की ये रियासत इतनी रईस थी की सोने मे नहाती थी। खजाने से भरपूर होने के साथ साथ त्रावणकोर के पास मोनोजाईट का खजाना था। जिसे ब्रिटिश सरकार को खास जरुत थी इसलिए त्रावणकोर रियासत के दीवान और वकील सर सीपी रामास्वामी अय्यर ने ने ब्रिटिश सरकार के साथ एक गुप्त समझौता किया था। वही दूसरी तरफ़ पाकिस्तान से जिन्ना की नजर भी त्रावणकोर पर टिकी हुई थी। लेकिन त्रावणकोर की जनता काँग्रेस और कॉममुनिस्टों से काफी प्रभावित थी इसलिए वो भारत में मिलना चाहती थी। जुलाई 1947 में त्रावणकोर की रियासत ने नया मोड लिया। जब रामास्वामी अय्यर के ऊपर जानलेवा हमला हुआ। इस हमले के बाद अय्यर ने त्रावणकोर के राज्य को सलाह दी कि महाराज हमे भारत के साथ मिल जाना चाहिए और इस तरह 30 जुलाई 1947 को त्रावणकोर भारत का हिस्सा बन गया।

जूनागढ़ की रियासत:

दूसरी रियासत थी, जूनागढ़ की। यह रियासत गुजरात मे थी। इस राज्य के काठियावाडी मे हिस्से मे इस रियासत क सबसे ज्यादा आबादी रहती थी। इस रियासत के राजा नवाब मोहम्मद महाबत खान 3rd थे जिन्होंने अपने दीवान शाहनवाज भुट्टों के कहने पर जूनागढ़ को पाकिस्तान के साथ मिलने का फैसला कर लिया था। नवाब का सोचना था कि जूनागढ़ की सीमा समुद्र से लगे होने की वजह से उन्हें भारत मे मिलने की जरूरत नहीं है वो आजाद भी काफी कुछ कर सकते है और अगर वो पाकिस्तान से जा मिलेंगे तो कराची से उनका लें डेन का काम चलता रहेगा। ऐसे मे अपनी ज्यादातर आबादी हिन्दू धर्म की होने के बावजूद नवाब ने पाकिस्तान मे मिलने का फैसला कर लिया। अब ऐसे मे पटेल शांत कैसे बैठे रह सकते थे उन्होंने सबसे पहले भारत मव विलय का प्रस्ताव दिया तब नवाब नहीं माने। इस समय नवाब के मंत्री मण्डल मे सर नवाज शाह भुट्टो भी शामिल हो गए। जो नवाब पर पाकिस्तान मे शामिल होने का दबाव बनाने लगे। इसके बाद पटेल ने कई सख्त कदम उठाए और पाकिस्तान से जूनागढ़ के लिए जनमत संग्रह करने की मांग की। आखिर मे 20 फरवरी 1948 को इस जनमत संग्रह मे 91% लोगों ने भारत मे शामिल होने की इच्छा जाहिर की और इस तरह जूनागढ़ भारत का हिस्सा बन गया।

हैदराबाद की रियासत:

अगली रियासत है हैदराबाद। ये उन रियासतों में से एक है, जिसे भारत मे शामिल करते समय सबसे ज्यादा मशकत करने की जरूरत पड़ी। इस रियासत की भारत के मध्य हिस्से पर काफी अच्छी पकड़ थी। हैदराबाद की रियासत सबसे अमीर रियासतों में से के थी। हैदराबाद के निजाम मीर उस्मान चाहते थे कि हैदराबाद बीटीश कामन्वेल्थ के तहत आज़ाद राष्ट्र घोषित किया जाए लेकिन उनके इस प्रस्ताव के लिए माउंट ने इसके लिए साफ तौर पर मना कर दिया। ऐसे मे मोहम्मद आली जिन्ना निजाम का फूल सपोर्ट कर रहे थे और उन्हें अपनी साइड करना चाहते थे। पटेल बखूबी इस बात को समझ चुके थे की अगर हैदराबाद पाकिस्तान के साथ मिल गया तो इससे भारत को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। यही से शुरू होता है हैदराबाद हिंसा का सफर। माउंट बेटन के इस्तीफे के बाद पटेल ने एक बाद पटेल ने एक बड़ा फैसला किया उन्होंने 13 सितंबर 1948 को भारतीय सेना हैदराबाद “ऑपरेशन पोलो” के लिए भेजा। चार दिन की लड़ाई के बाद निजाम ने अपने हथियार डाल दिया और हैदराबाद भारत का हिस्सा बन गया।

अगली रियासत भोपाल की है, जो भारत मे शामिल होने के लिए राजी नहीं थी। आजादी के बाद भी यहाँ भारत का तिरंगा नहीं लहराया जा सकता था। वजह भोपाल के नवाब हमीदुल्लाह खान की मुस्लिम लीग के नेता जिन्ना से करीबी दोस्ती और साथ ही काँग्रेस से मनमोटाव के रिस्ते। इसी वजह से नवाब भोपाल को पाकिस्तान का हिस्सा बनाना चाहते थे। इस रियासत में राजा बेशक मुस्लिम था लेकिन यहाँ के ज्यादातर लोग हिन्दू धर्म को मानने वाले थे। सरदार पटेल और वीपी मेंनन ने हार नहीं मानी॥। वो लगातार कोशिशों मे लगे हुए थे और साथ ही उन्होंने नवाब पर दवाब बनाए रखा था जिसके कारण हार मानते हुए। आखिर मे बाकी रियासतों की तरह ही नवाब ने भारत मे मिलना कबूल कर लिया। और 30 अप्रैल 1950 में भारत में मिलने के अग्रीमेंट पर साईन कर दिए।

आखिरी रियासत थी जोधपुर और वहाँ के राजा हिन्दू होने के बाद भी पाकिस्तान का हिस्सा बनना चाहते थे। इस रियासत के राजा हनवंत सिंह को मोहम्मद आली जिन्ना ने पाकिस्तान के साथ आने के लिए कराची बंदरगाह पर नियंत्रण का लालच दिया था। जैसे ही ये बात पटेल को पता चली उन्होंने हनवंत सिंह को इससे भी अच्छे ऑफर का लालच देकर उन्हें अपने साइड कर लिया। बस इसी तरह ये आखिरी रियासत भारत मे मिल गई और भारत एक सम्पूर्ण राष्ट्र बन गया।

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