
क्यों आ रहें हैं Myanmar के Refugee भारत में? | Myanmar Refugee Crisis Explained
दोस्तों आपने वो कहावत तो सुनी ही होगी कि दुख में पड़ोसी ही पड़ोसी के काम आता है लेकिन अगर पड़ोसी आपके ही घर में आकर बस जाए तो आप कब तक अपने पड़ोसी का साथ देंगे …… सोच में पड़ गए ना..
दोस्तों ऐसा ही कुछ हाल आजकल हमारे देश का है, myanmar में तख्तापलट हुआ और असर हमारे देश पर पड़ा..क्योंकि अपने देश में बेसहारा महसूस कर रहे म्यामांर के लोग भारत में शरणार्थी बनकर कानूनी या गैर कानूनी रास्तों से एंट्री कर रहे हैं….
अब सरकार देश की 135 करोड़ जनता को संभाले या इन शर्णार्थियों को सहारा दे …..अगर एंट्री देते हैं तो सुरक्षा शिक्षा रोजगार पर संकट बढ़ जाएगा….और नहीं देते तो मानवता शर्मसार…करें तो क्या करें…. दोस्तों सरकार के लिए शरणार्थियों का आना एक बड़ा सकंट है लेकिन अगर भारत शरणार्थियों को एंट्री ना दें तो क्या दुनिया नहीं कहेगी कि इंसानियत , मानवता की बातें करने वाला भारत आज बेसहारा लोगों को शरण नहीं दे रहा ….
ये सब सुनकर आप भी दुविधा में जरुर पड़ गए होंगे …पर दोस्तों आपकी इस दुविधा का भी जवाब है हमारे पास…
इंसानियत या देश हित किसे चुनना चाहिए सरकार को….म्यामांर के तखतापलट की पूरी कहानी और शरणार्थी संकट का पूरा सच जानेंगे आज Factified Specials के इस खास एपिसोड में
लेकिन दोस्तों इस सवाल का जवाब जाने से पहले आप ये समझिए की शरणार्थी यानि refugee होते कौन है
शरणार्थी कौन होते हैं
आम भाषा में शरणार्थी यानी की शरण मांगने वाले, असहाय और लाचार…ऐसे लोग जो किसी कारणवश अपने घर या देश को छोड़ आए हो..अंग्रेजी भाषा में ऐसे लोगों को Refugee कहा जाता है………
दोस्तों ये बात तो आप भी समझते ही हैं कि अब कोई ऐसे ही अपना घर देश तो छोड़ेगा नहीं….हिटलर अब भले ही ना रहो लेकिन हिटलर जैसी तानाशाही आज भी दुनियाभर के देशों में देखने को मिल ही जाती है, जिसमें लोगों के हितों का हनन होता है, अधिकार कुचले जाते हैं, बेवजह मारा जाता है, उन पर अपने कानून थोपे जाते हैं ऐसे में देश से प्यार कितना भी हो छोड़ना तो पड़ता ही है…और ऐसे ही लोग दूसरे देशों में शरण लेते हैं और शरणार्थी कहलाते हैं , दोस्तों 1950 में संयुक्त राष्ट्र ने United Nations High Commissioner for Refugees का गठन किया था जो इसके बाद से ही Refuges के राइट्स के लिए काम कर रही है और मौजूदा समय में ये दुनिया के 135 देशों में सक्रिय है…..UNHCR के अलावा कई इंटरनेशनल एनजीओ भी है जो इन बेसहारा लोगों के लिए काम करते हैं..पर दोस्तों अगर आप ये सोच रहे हैं कि अपने देश से भागे हर इंसान को Refuge का टैग दे दिया जाए तो ऐसा भी नहीं है….
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1951 Refugee Convention क्या है
1951 Refugee Convention के अनुसार नस्ल, राष्ट्रीयता, किसी सामाजिक या राजनीतिक संगठन की सदस्यता आदि के आधार पर किसी को उत्पीड़न का खतरा हो और उसे अपने देश में संरक्षण ना मिले, तो अपने देश से बाहर रह रहा ऐसा कोई भी व्यक्ति शरणार्थी कहलाएगा….लेकिन वहीं war criminals 1951 Refugee Convention के अंडर नहीं आते हैं
दोस्तों मजबूरी में अपना देश छोड़कर आए ये शरणार्थी भले ही कितनी भी मुसीबतों से गुजर रहे हों लेकिन ये भी सच है कि हमारे देश के लिए ही नहीं बल्कि दुनियाभर के देशों के लिए ये एक समस्या है जिसका सही समाधान अभी तक नहीं मिल पाया है….पर दोस्तों ये आप भी समझते हैं कि इसमें इन लोगों का भी कोई दोष नहीं है क्योंकि ये तो खुद अपने देश से बेघर हो गए हैं…अपना घर अपना देश कौन छोड़ना चाहता है वो भी इस तरह…लेकिन दोस्तों जब अधिकारों का हनन होने लगे..बेवजह नागरिकों को प्रताड़ित किया जाने लगे तो मजबूरी में लोगों को अपना देश छोड़ना पड़ता है…और ऐसे लोग ना अपने देश वापस जा पाते हैं और ना कोई और देश इन्हें पूरी तरह अपना पाता है…दूसरे देशों पर ये एक बोझ की तरह होते हैं पर क्या ये इनका दोष है ?…
अगर भारत की बात करें तो आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत में बसे कानूनी और गैर कानूनी शरणार्थियों की संख्या दुनिया के कई विकसित देशों से भी ज्यादा है….और यहां पर एक और गौर करने वाली बात ये भी है कि दुनियाभर के शरणार्थियों का 60 प्रतिशत से भी ज्यादा हिस्सा सिर्फ Syria, Venezuela, Afghanistan, South Sudan और Myanmar से आता है, जिसमें से आफगानिस्तान और म्यांमार भारत के पड़ोसी हैं । इन देशों में मजबूत लोकतंत्र का ना होना और बढ़ता टेरिज्म एक बहुत कारण है यहां के लोगों के पलायन का
भारत में शरणार्थियों का इतिहास
दोस्तों भारत से सटे देशों में जब भी संकट आता है तो वहां के लोग भारत की तरफ माइग्रेट होने लगते हैं इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि इन देशों की बोली भाषा और कल्चर काफी हद तक भारत से मिलता है…और भारत में इनके लिए जीवन निर्वाह बाकी देशों के मुकाबले आसान होता है और यही वजह भी है कि जब इस साल म्यांमार में तख्तापलट हुआ तो यहां के लोग सहार के लिए भारत की तरफ देखने लगे और यहां शरण लेने लगे।
1971 में UNHCR ( United Nations High Commissioner for Refugees ) के भारत में प्रतिनिध एफ एल पिजनाकर हॉर्डिक ने UNHCR हेड ऑफिस के नाम एक चिट्ठी भेजी थी जिसमें लिखा था कि भारत की पू्र्वी पाकिस्तान सीमा यानी आज के बांग्लादेश बॉर्डर पर शरणार्थी संकट शुरु होने वाला है…और इसकी वजह थी 1971 की इंडो पाक वॉर । जिसमें भारत पूर्वी पाकिस्तान यानी की बांग्लादेश की तरफ था…और आपको जानकर हैरानी होगी कि1971 के खत्म होने तक भारत में 1 करोड़ शरणार्थी एंटर कर चुके थे…यानी की जब भी पड़ोसी देशों में मार-काट या फिर लोकतांत्रिक संकट आता है तो वहां के लोग भारत में आना शुरु कर देते हैं…
आजादी के बाद भारत में पाकिस्तान, बांग्लादेश, म्यांमार, श्रीलंका, तिब्बत और आफगानिस्तान से बड़ी संख्या में शरणार्थी आए…..
म्यांमार के तख्तापलट पर भारत का पक्ष
म्यांमार की करंट सच्यूशन को देखें कि बात करें तो साल की शुरूआत में ही सेना ने यहां बंदूक की नोंक पर तख्तापलट कर दिया । जिसके बाद से ही यहां पर प्रोटेस्ट का सिलसिला जारी है और आए दिन लोग मारे जा रहे हैं, और दोस्तों अब जान पर आएगी तो लोग तो पलायन करेंगे ही …म्यामांर के लोग अपने पड़ोसी देशों में शरण ले रहे हैं अब इसमें इन देशों की मर्जी हो ना ये इन लोगों के लिए मायने नहीं रखता…क्योंकि ये तो बस अपने लिए एक जमीं की तलाश कर रहे हैं जहां ये जिंदा रह सकें । फिर कानूनी तरीके से मिले या गैर कानूनी तरीके से….हालांकि म्यांमार में सेना का राज और म्यांमार के लोगों का भारत में शरण लेना कोई नई बात नहीं है…साल 2015 तक यहां सेना का ही राज था, लेकिन 2015 में पहली बार यहां चुनाव कराए गए नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी पार्टी की जीत हुई …लोगों को लगा शायद अब म्यामांर में कुछ बदलेगा और इसलिए लोगों का पलायन भी कम हो गया….
पार्टी ने 5 साल राज भी किया… 2020 में फिर चुनाव हुए जिसमें एक बार फिर नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी की जीत हुई…पर यहां के सैन्य अधिकारियों ने आरोप लगाया कि इलेक्शन में फर्जीवाड़ा हुआ है और इसके बाद इस साल सेना ने सरकार का तख्ता पलट कर दिया….दोस्तों तख्तापलट के बाद म्यामांर के लोग क्या झेल रहे हैं ये तो पूरी दुनिया देख रही है….पर यहां पर गौर करने वाली बात ये है कि भारत दुनिया के उन देशों में से एक है जो म्यामांर के तख्तापलट पर खामोश रहा…यही नहीं भारत ने 27 मार्च को म्यांमार में हुई सैन्य परेड में भी हिस्सा लिया….दोस्तों आपके मन में अब ये सवाल आ रहा होगा कि क्या भारत म्यांमार के तख्तापलट को सपोर्ट करता है ?
तो दोस्तों बता दें कि सरकार ने इस पर अपना स्टैंड क्लियर नहीं किया है…. क्योंकि भारत म्यांमार का पड़ोसी देश है…. भारत और म्यांमार के बीच ऐतिहासिक सोशल , कल्चरल और इकनॉमिकल रिलेशनस है…
इसलिए जितना आसान अमेरिका और ब्रिटेन के लिए है म्यामांर की कंडीनशन पर कमेंट करना…. भारत के लिए उतना आसान नहीं है….क्योंकि इसका सीधा असर भारत की विदेश नीति पर पड़ता है और दोस्तों अगर भारत खुलकर म्यांमार के तख्तापलट की निंदा करता है तो भारत को म्यांमार के शरणार्थियों को खुलकर सपोर्ट भी करना पड़ेगा जो कि एक समस्या है
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भारत ही क्यों आ रहे हैं म्यांमार के शरणार्थियों
दोस्तों म्यांमार की सीमा भारत के अलावा थाइलैंड और चीन से भी मिलती है..चीन में म्यांमार के शरणार्थियों की कोई रिपोर्ट सामने नहीं आई है…लेकिन थाईलैंड में अब तक 3 हजार से ज्यादा शरणार्थी एंटर कर चुके हैं जबकि थाईलैंड भी भारत की तरह aane waale शरणार्थियों का विरोध कर रहा है…लेकिन भारत में शरणार्थियों के पलायन की संख्या थाईलैंड से ज्यादा है…. ऐसा इसलिए दोस्तों क्योंकि म्यांमार के लोगों के भारत के उत्तर पूर्वी राज्य मणिपुर और मिजोरम के चिन समुदाय के साथ जातीय रिश्ते हैं…जिस वजह से अक्सर दोंनों देशों की पॉलिक्टस का भी इन राज्यों पर खासा असर पड़ता है…और ऐसे में लाजमी है कि अगर म्यांमार के लोगों पर संकट आएगा तो मणिपुर मिजोरम अपना हाथ सहारे के लिए आगे बढ़ाएगा…
ये बिल्कुल वैसा ही है जैसे श्रीलंका के तमिलों से जुड़े मामले तमिलनाडु को प्रभावित करते हैं।…
हालांकि नार्थ ईस्ट के दोनों राज्यों में अलग-अलग पॉलिटिकल पार्टीज का राज होने की वजह से दोनों का इस मुद्दे पर स्टैंड भी अलग-अलग है…लेकिन भारत सरकार का स्टैंड यहां पर क्लियर है कि वो म्यांमार से आए शरणार्थियों को शरण नहीं देना चाहती
दोस्तों केंद्र और स्टेट गर्वनमेंट के बीच का ये मतभेद उस समय क्लियर हो गया जब होम मिनिस्टरी का एक ऑर्डर सोशल मीडिया पर लीक हो गया । जिसमें लिखा था कि शरणार्थियों को मेडिकल सुविधाएं दी जाए लेकिन शेल्टर या फूड सुविधाएं उपलब्ध ना कराई जाएं और उन्हें शांति वापस भेज दिया जाए। इस ऑर्डर के लिक होने के कुछ वक्त बाद ही इसे कैंसिल कर दिया गया पर इस ऑर्डर ने क्लियर कर दिया कि सरकार शरणार्थी बोझ उठाने के लिए अब तैयार नहीं है…
भारत क्यों नहीं देना चाहता म्यांमार के शरणार्थियों को एंट्री
दोस्तों इसकी वजह बहुत साफ है – म्यांमार के शरणार्थियों के आने से देश का बोझ और बढ़ जाएगा…क्योंकि शरणार्थी हमारे देश का हिस्सा नहीं है तो उनकी असल पहचान करना भी सरकार के लिए मुश्किल हो जाता है जिसे देश में आंतकवाद और घुसपैठ जैसे अपराध बढ़ जाते हैं….इसके अलावा शरणार्थियों की एंट्री देश के Economics पर भी एक बोझ है…
उदाहरण के लिए आपके घर में चार लोग हैं जिनके के लिए रोज 4 रोटी बनती हैं लेकिन अगर एक दिन आपके घर में 4 log pados se आकर रहने lg jaayen तो जो 4 रोटियां 4 लोगों में बंट रही थी वो अब 8 लोगों में बंटेगी ….हालांकि हम इस बात को भी नहीं झुकला सकते कि अगर लोगों की संख्या बढ़ेगी तो देश की Productivaty भी बढ़ेगी लेकिन दोस्तों दिक्कत तो resources की है जो हमारे देश की जनता के लिए ही कम पड़ रहे हैं
और दोस्तों अब तो आप समझ ही गए होंगे कि जब शरणार्थी किसी देश में आते हैं तो उस देश के रोजगार से लेकर जीडीपी हर सेक्टर पर पहले के मुकाबले ज्यादा बोझ बढ़ जाता है, जिसे देश में बेरोजगारी बढ़ती हैं, हंगर रेट बढ़ता है इसके अलावा और भी कई समस्याएं आम जनता के लिए पैदा होती हैं
क्या भारत म्यामांर के शरणार्थियों को शरण देने के लिए बाध्य है ?
दोस्तों 1951 Refugee Convention जिसके बारे में हम इस वीडियो में पहले ही बता चुके हैं उसमें 1967 में कुछ बदलाव किए गए थे और इसे UNHCR 1967 प्रोटोकॉल कहा गया…इस Convention पर साइन करने वाले देश शरणार्थियों को शरण देने के लिए बाध्य हैं पर भारत ने इस Convention पर आजतक साइन नहीं किया है यानी की यूएन के इस करार को मानने के लिए भारत बाध्य नहीं है…आम शब्दों में कहे तो शरणार्थियों को देश में एंट्री देना ना देना भारत की खुद की मर्जी है…लेकिन दोस्तों इस के बावजूद भी UNHCR की 2014 की रिपोर्ट की कहती है कि भारत में 109,000 तिब्बती शरणार्थी, 65,700 श्रीलंकाई, 14,300 रोहिंग्या, 10,400 अफगानी, 746 सोमाली और 918 दूसरे रजिस्टर्ड शरणार्थी है.यानी की वो शरणार्थी है जिनका डाटा सरकार के पास रजिस्टर्ड है इसके अलावा भी लाखों की संख्या में ऐसे शरणार्थी यहां बसे है जिनका डाटा सरकार के पास मौजूद ही नहीं है….
और दोस्तों ये डाटा तो यही कहता है कि सरकार की मर्जी हो या नहीं म्यांमार के शरणार्थी भी भारत में शरण ले ही लेंगे
क्या है शरणार्थियों की समस्या का हल
शरणार्थियों की समस्या का हल एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब अब तक यूएन भी नहीं ढूंढ पाया है…मौजूदा समय में शरणार्थियों को या तो शरण देने वाले देश का नागरिक बना दिया जाता है या फिर उनकी वतन वापसी करा दी जाती है…और जिन लोगों को ये दोनों ही ऑप्शन प्राप्त नहीं होते, वो बिना पहचान के ही जिंदगी बसर करते हैं । दोस्तों भारत को लेकर अक्सर कहा जाता है कि आने वाले सालों में भारत पूरी दुनिया को लीड करेगा….और जिस तरह भारत हर क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है इस बात में कोई शक भी नहीं है…पर दोस्तों ये भी सच है कि एक अच्छा लीडर वही होता है जो सबको साथ लेकर चलना जानता है…इसलिए दूसरे देश शरणार्थियों की समस्या का समाधान निकालें ना निकालें भारत को अपने देश में रह रहे शरणार्थियों के लिए अब ठोस कदम उठाने ही होंगे
दोस्तों संकट में पड़ोसी की मदद करना हमारी परंपरा है, लेकिन अगर परंपरा ही संकट बन जाए तो…..शरणार्थियों को पनाह देना मानवधिकार के नजरिए से सही है लेकिन देश की सुरक्षा के नजरिए से कई सवाल खड़ी करती है बेसहारा को सहारा देना भारत की सभ्यता में है पर देश की सुरक्षा को संकट में डालना भी सही नहीं…..ऐसे में दोस्तों आपको क्या लगता है म्यांमार के शरणार्थियों को भारत में एंट्री मिलनी चाहिए या नहीं कमेंट बॉक्स में बताएं……