
General Yahya Khan: जिसकी अय्याशी से पाकिस्तान हारा था 1971 का युद्ध
1971 की दिसम्बर की सर्दियाँ, उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी कोलकाता में एक पब्लिक मीटिंग को संबोधित कर रही थी। अचानक खबर आती है कि पाकिस्तान ने हवाई हमला किया है। ये खबर पहुँचती है और शाम के ठीक 5 बजकर 40 मिनट पर पाकिस्तान की तरफ से भारी बमबारी शुरू हो जाती है।
पाकिस्तान ने पाने इस अटैक का कोड नेम ऑपरेशन चंगेज़ खान दिया था। उस वक्त पाकिस्तानी एयरफोर्स के फाइटर planes ने पठानकोट, श्रीनगर अमृतसर और जोधपुर के मिलिट्री एयरबेस को अपना टारगेट बनाया था। एक साथ 11 एयरबेस पर अटैक हुआ था। पाकिस्तान की तरफ से उस वक़्त जनरल याहया खान कमान संभाल रहे थे और वो ही बाद में पाकिस्तान की हार की सबसे बड़ी वजह भी बने ।
पाकिस्तान से 1971 का युद्ध:
15 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान के जनरल नियाज़ी ने जनरल मानेकशॉ के सामने सरेंडर के ऑफर को कबूल कर लिया । इसके बाद 16 दिसंबर को जो हुआ वो दुनिया में इतिहास बन गया। पाकिस्तान की सेना भारतीय फौज के सामने हथियार डालने का फैसला करती है।
इतिहास में करीब 50 साल पहले की इस घटना में पाकिस्तान की सेना के 93 हजार सैनिकों ने इंडियन आर्मी के सामने सरेंडर किया था। पाकिस्तान के जनरल ने भारतीय अफसर के सामने घुटने टेक दिए थे। वो फूट फूट कर रो रहे थे। बताया जाता है कि सरेंडर wali टेबल पर इतने हथियार थे, जिसकी कल्पना करना भी मुश्किल था।
लेकिन इस हार की सबसे बड़ी वजह थे जनरल याहया खान। asal me याहया ख़ान बहुत रंगीले आदमी थे। उनको शराब पीने का भी बहुत शौक था। ज्यादा शराब पीने के बाद जो भी गलत किया जा सकता है वो उस हद तक अपने काम को अंजाम देते थे। कहा जाता है कि याहया ख़ान शराब पीने के लिए इतने बदनाम हो चुके थे कि उनके सैनिक कमांडरों को कह दिया गया था कि वो रात के दस बजे के बाद उनके दिए हुए किसी भी आदेश को न मानें |
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याहया खान की अय्याशी:
1971 में पाकिस्तान के ‘सरेंडर’ से कुछ दिन पहले याहया ने पेशावर में बने अपने नए घर पर एक ‘हाउस वार्मिंग’ पार्टी दी थी। रात होती गई, लोगों ने शराब के नशे में अपने कपड़े उतारने शुरू कर दिए। एक समय ऐसा आया कि सभी लोग बिना कपड़ों के थे। एक बंगाली महिला श्रीमती शमीम जो उनकी खास मेहमान थी वो वहाँ से जाना चाहती थी। लेकिन याहया उसी हालत में उनको घर छोड़ने की जिद करने लगे। वहाँ मौजूद जनरल इशाक ने जैसे तैसे उनको पैंट पहनाई। ऐसे ही तमाम झेपानें वाले किस्सों से याहया की कहानियाँ भरी पड़ी है।
अब बात करें 1971 की हार की तो जनरल नियाज़ी ने हार का ठीकरा जनरल याहया के सिर पर ही फोड़ा था। उनका कहना था हमने जीती हुई बाजी सिर्फ उनके कहने पर हार दी। उनको लगा कि ये लड़ाई तो लंबी होगी। लेकिन याहया पाकिस्तान पर हुकूमत करना चाहते थे। सिर्फ उनके लालच की वजह से ऐसा हुआ। 13 तारीख़ को याहया का हुकुम आया, स्टॉप फ़ाइटिंग एंड सरेंडर। अब मौजूदा पाकिस्तान को बचाने के लिए पाकिस्तानी सेना को आज के बांग्लादेश को छोड़ना पड़ा।
दिलचस्प बात ये है कि हार की ख़बर पाकिस्तानी लोगों को ऑल इंडिया रेडियो से मिली थी। रेडियो पाकिस्तान ने उस दिन अपने शाम 5 बजे के समाचार बुलेटिन में कहा था भारत और पाकिस्तान के कमांडरों के बीच सहमति के बाद पूर्वी क्षेत्र में लड़ाई रुक गई है और भारतीय सैनिकों ने ढाका में प्रवेश कर लिया है। याहया ने कहीं पर भी ये जिक्र नहीं किया था कि वो हार चुके हैं।
पाकिस्तान के 60 से 75 एयरक्राफ्ट खत्म हो चुके थे और जहां तक पाकिस्तानी एयरफोर्स के पायलट का सवाल है तो इनमें से कई युद्धबंदी बना लिए गए थे। आपको बात दें जिस वक्त ढाका के रेसकोर्स मैदान में सरेंडर हो रहा था तब जनरल नियाजी को कहा गया कि वो तलवार सरेंडर करें, लेकिन उनके पास तलवार तक नहीं थी इसलिए एक पिस्तौल देकर सरेंडर करवाया गया था।