
‘रामायण’ के लिए जान देने को तैयार थे रामानंद
Ramayan: जब बात टीवी के सबसे मशहूर सीरीयल की आती है तो उसमें सबसे ऊपर है “रामायण” (Ramayan) । आज भी लोग रामायण को दोबारा देखने से पीछे नहीं हटते और इसका पूरा श्रेय रामानंद सागर को जाता है। या आप ये भी कह सकते है कि “रामानंद सागर की रामायण” के नाम से ही लोग उन्हें याद करते है। कला और सिनेमा में इतना बड़ा योगदान देने के लिए रामानंद सागर को भारत सरकार ने साल 2000 में पद्मश्री से सम्मानित भी किया था। लेकिन जिस रामायण की वजह से उन्हें इतनी पहचान मिली उसमें एक पाकिस्तानी किरदार का भी खास योगदान है।
ये बात आजादी के समय से जुड़ी हुई है 1947 में वो दौर चल रहा था जब बंटवारे की वजह से हालात बहुत खराब थे। करीब 30 साल के रामानंद कई साल पहले से अपने परिवार के साथ कश्मीर में आकर बस चुके थे। लेकिन देश के बंटवारे ने सभी की जिंदगी को पूरी तरह से बदलकर रख दिया था, रामानंद (Ramayan) को अनुमान भी नहीं था कि अब उनके साथ क्या होने वाला है। उस समय में पाकिस्तान के हमले और कबायलियों के आतंक ने पूरे कश्मीर को तहस नहस कर रखा था जिससे उनका परिवार भी प्रभावित हुआ था। इन हमलों के बीच तब पायलट बीजू पटनायक हवाई जहाज लेकर उन्हें बचाने के लिए वहाँ पहुंचे थे।
ये बात 27 october 1947 की है जब रामानंद अपनी पत्नी, 5 बच्चों, सास और साले के साथ पूरी रात श्रीनगर के पुराने हवाई अड्डे में छिपकर बैठे हुए थे। ये वहीं दौर था जब पाकिस्तानी सेना की मदद से 10 हजार जिहादी कबायली बारामूला पर कब्जा कर चुके थे और उन्होंने श्रीनगर की बिजली उड़ा दी थी। हालात बहुत खराब थे, कोई भी सुरक्षित नहीं था, लूट, अपहरण, बलात्कार जैसी घटनाएं आए दिन सुनने को मिल रही थी। ऐसी परिस्थिति में रामानंद अपने परिवार के साथ किसी भी तरह से वहाँ से निकल जाना चाहते थे। जब उन्हें बचाने के लिए बीजू पटनायक वहाँ आए तो रामानंद के साथ उनका परिवार तो था ही साथ में उनके पास था एक ट्रंक जिसे वो किसी भी हाल में छोड़ने को तैयार नहीं था। जब प्लेन में चढ़ने की बारी आई तो प्लेन स्टाफ ने उन्हें ट्रंक अंदर लाने से मना कर दिया। रामानंद के अलावा वहाँ और भी कई शरणार्थी थे जो अपनी जान बचाने के लिए वहाँ से निकल जाना चाहते थे।
लेकिन रामानंद ने इसके बावजूद भी अपने सिर पर से बड़ा ट्रंक हटाने से मना कर दिया, वो चिल्ला पड़े कि इसके बिना न ही मैं और न ही मेरे परिवार का कोई भी सदस्य प्लेन में बैठेगा। उसी टाइम उनकी मदद के लिए एक पंजाबी जाटनी आ गई। उसने ट्रंक को उठाकर प्लेन में फेंक दिया और साथ में रामानंद को भी। उन्होंने जोर से पायलट से कहा ” तुझे शर्म नहीं आती, चार दिन से हमने कुछ खाया नहीं है’। ऐसा सुनकर पायलट बीजू अचानक से शांत हो गये। लेकिन उन्होंने रामानंद से उस बक्से को खोलने के लिए कहा जब वो खुला तो हर कोई बस देखता ही रह गया। उसमें उनके उपन्यास के नोट्स, बरसात फिल्म की स्क्रिप्ट और विभाजन के अनुभव भी थे। ये सब दिखाते हुए उनकी आँखों में आँसू आ गए और वो बोल पड़े “हां यही मेरे हीरे जवाहरात हैं, जो मैं लेकर जा रहा हूं। ”
वहाँ मौजूद हर शख्स ये देखकर हैरान था। बीजू पटनायक ने तुरंत उन्हें अपने गले से लगा लिया। ये देखकर बाकी लोग भी जोश से भर गए। सभी के लिए ये एक बहुत ईमोशनल मूमेंट था। बीजू पटनायक एक पायलट तो थे ही साथ में इनका पॉलिटिक्स में भी इंटेरेस्ट था। ये बाद में दो बार उड़ीसा के मुख्यमंत्री बने थे और रामानंद ने लेखन और निर्देशन के क्षेत्र में अलग परचम लहराए। इन्होंने रामायण, कृष्ण, लव कुश, साई बाबा जैसी धार्मिक कहानियों को सीरीअल का रूप दिया। ऐसा कहा जाता है वो पहले लव कुश की कहानी को टीवी पर नहीं दिखाना चाहते थे लेकिन लोग रामायण देखने के बाद उत्तर रामायण देखना चाहते थे। लोगों ने इसकी मांग की और मामला संसद तक पहुंच गया। जिसके बाद रामानंद सागर के पास पीएमओ से कॉल आया इसके बाद रामानंद सागर आगे की कहानी दिखाने के लिए तैयार हो गए।
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