Home अन्य एक सुपरडॉग हचिको की कहानी, 10 साल करता रहा मालिक का इंतजार
अन्य - March 4, 2023

एक सुपरडॉग हचिको की कहानी, 10 साल करता रहा मालिक का इंतजार

कहते हैं कुत्ता इंसान का सबसे अच्छा दोस्त होता है। वो अपनी जान दे देगा लेकिन कभी अपने मालिक को कुछ नहीं होने देगा। चलिए आज जानते हैं एक ऐसे कुत्ते की कहानी जो अपने मालिक के इंतजार में 10 साल तक स्टेशन पर खड़ा रहा, और एक दिन इंतजार करते करते अपने उसने अपनी जान दे दी। लेकिन ऐसा क्या हुआ कि उस कुत्ते का मालिक उसके पास कभी वापस नहीं आया? आखिर क्यों इस कुत्ते ने अपने मालिक का कभी इंतज़ार नहीं छोड़ा? दुनिया के सबसे वफादार कुत्ते की ये कहानी क्या है जिसे जानकर आपके आंसू नहीं रुकेंगे।

ये कहानी है एक प्रोफेसर की जो अपने लिए एक साथी की तलाश में था। एक ऐसा साथी जो उसे कभी धोखा ना दें। तभी उसके एक स्टूडेंट ने उसे एक साथी से मिलवाया। प्रोफेसर उस साथी को प्यार से हचिको कहकर पुकारता था,, देखते ही देखते दोनों में प्यार इतना बढ़ गया की दोनों एक दूसरे के बिना जी नहीं सकते थे और एक दिन हचिको रोज की तरह ,प्रोफेसर का इंतजार कर रहा था। देखते ही देखते ये इंतज़ार एक साल से दो साल और फिर दो साल से 10 साल का हो गया और एक दिन हचिको ने इंतजार करते करते ही अपने प्राण त्याग दिए।

इस वफादार कुत्ते की कहानी की शुरुआत होती है, 1924 से जब जापान के इजबुरो नाम के एक प्रोफेसर जो अपने स्टूडेंट्स को एग्रीकल्चर सब्जेक्ट पढ़ाते थे। वो अपने लिए एक शानदार ब्रीड के कुत्ते को ढूंढ रहे थे। उनके एक स्टूडेंट के कहने पर प्रोफेसर इजबुरो ने एक हचिको कुत्ते (Hachiko Dog) को अडॉप्ट किया। प्रोफेसर ने उस कुत्ते का नाम हची रखा और इसे अपने बेटे की तरह प्यार करने लगा, हची भी अपने मालिक को जान से ज्यादा प्यार करता था।

हची और प्रोफेसर के बीच का प्यार इतना ज्यादा बढ़ गया था कि वो रोज सुबह प्रोफेसर को स्टेशन छोड़ने जाया करता था। दोपहर की ट्रेन से जब प्रोफेसर के वापिस आने का टाइम होता था तब हची टाइम से ही स्टेशन पर पहुँचकर अपने मालिक का इंतजार किया करता था। वो हमेशा अपने मालिक के साथ ही वापस आता था।

ये सिलसिला कई सालों तक चलता रहा, वो कुत्ता रोज अपने मालिक को छोड़ने और लेने जाता था। लेकिन कहानी में ट्विस्ट तब आया जब रोज की तरह हचिको को ये अहसास हुआ कि ट्रेन के आने का टाइम हो गया है, और वो स्टेशन पर आकर अपने मालिक का इंतजार करता रहा। दोपहर से शाम हो गई और फिर शाम से रात धीरे धीरे पूरा स्टेशन सुनसान पड़ गया। उसका मालिक अभी भी नहीं आया था। दरअसल 1926 के समय के वो प्रोफेसर कॉलेज में पढ़ा रहे होते हैं और हार्ट अटैक की वजह से अचानक उनकी मौत हो जाती है। यही वजह थी कि प्रोफेसर कभी लौटकर आते ही नहीं आते।

हचिको वही ठंड में अपने मालिक का इंतजार कर ही रहा होता है। हचिको को प्रोफेसर का एक दोस्त देख लेता है। जो उसे अपने घर लेकर चला जाता है और उसका ध्यान रखने लगता है। हचिको का दिल और दिमाग एक ही जगह पर टिका था और वो था प्रोफेसर के लौट आने का इंतजार। लेकिन कोई किसी से कितना भी प्यार कर लें, मरा हुआ इंसान कभी लौटा थोड़ी है और कुछ दिन बीतने के बाद हची अचानक उस घर से गायब हो जाता है।

उसे हर तरफ ढूंढा जाता है और बहुत ढूंढने पर हचिको फिर उसी स्टेशन पर मिलता है जहाँ वो रोज अपने मालिक को छोड़ने और लेने जाया करता था। बहुत कोशिश करने पर भी प्रोफेसर के दोस्त उसे अपने साथ नहीं ले जा सके। इसलिए मजबूरी में वो हची को वहीं छोड़कर चले गए।

हची वही बैठे बैठे इंतज़ार करने लगा , और उसके इन्जार की इंतेहा तो तब हो गई, जब हची करीब 10 साल तक उसी जगह अपने मालिक का इंतजार करते करते 1935 में हची कैंसर की वजह से मर गया।

ये मामला तब हाइलाइट हुआ जब 1935 में हची की कहानी को जापान के एक मीडिया ने कवर किया था,,, जिसके बाद जापान के लोग उसे चूकेन हचिको के नाम से बुलाने लगे,,, जिसका मतलब होता है, वफादार कुत्ता,,,, मीडिया कवरेज के बाद बहुत से लोगो ने हची को अडॉप्ट करने की कोशिश की ,,,,लेकिन हची इतना वफादार था,,कि किसी के घर जाना तो छोड़िए वो किसी और का दिया हुआ खाना तक नहीं खा रहा था,,,हची की इस वफादारी ने उसे जापान का हीरो बना दिया,जिसकी वफादारी के याद में आज भी उसी जगह हची और उसके मालिक की मूर्ति बनी हुई है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *