
अगर सारे Glacier पिघल गए तो? | क्या सारे ग्लेशियर पिघल सकते हैं ?
हमारी इस पृथ्वी का 70 प्रतिशत से भी ज्यादा हिस्सा पानी से ढका हुआ है और दो तिहाई हिस्सा पृथ्वी के ध्रुवों पर इन बड़े बड़े Glacier के रुप में जमा है पर क्या हो अगर पृथ्वी पर मौजूद इन ग्लेशियर्स की सारी बर्फ पिघल जाए…. एक रोज आप सुबह उठो और अपने शहर को पानी में डूबा पाओ….आपके देश के आधे से ज्यादा शहर जलमगन हो जाए…..
ग्लेशियर क्या होते हैं
दुनिया का ज्यादातर पानी महासागर के रुप में, समुद्र के रुप में धरती पर मौजूद है लेकिन धरती का बहुत सारा पानी इन विशालकाय बर्फीले पहाड़ों के रुप में जमा है… जिसे हम ग्लेशियर, हिमानी, हिमाद्री और हिम नदी भी कहते हैं….और क्या हो अगर धरती पर मौजूद ये सारे ग्लेशियर पिघल जाए तो….
चलिए इसे हम जरा एक उदाहरण के जरिए समझते हैं ….
क्या आपने कभी पानी से भरे गिलास में बर्फ को पिघलते देखा है …बर्फ के पिघलने से पानी के स्तर पर क्या असर पड़ता है …असल में कोई असर नहीं होता…बर्फ के टुकड़े के पिघलने से पानी के स्तर में कोई बदलाव नहीं आता…
लेकिन अगर पानी के ग्लास में नमक डालकर देखें तो ..अब ग्लास में एक क्यूबिक बर्फ के पिघलने से पानी का स्तर 0.03 क्यूबिक बढ़ जाता है…ये स्तर नमक वाले पानी की जगह लिए जाने की वजह से बढ़ता है ….और अब अगर यही बात धरती पर मौजूद सभी ग्लेशियर पर लागू करें तो क्या होगा….क्या होगा अगर अंटार्टिका, ग्रीनलैंड और पृथ्वी पर मौजूद सारे ग्लेशियर क्लाइमेट चेंज की वजह से पिघल जाएं…..
अगर सारे ग्लेशियर पिघल गए तो
समुद्र का जलस्तर बढ़ जाएगा..
धरती का 10 प्रेसेंट हिस्सा यानी 15 लाख वर्ग किलोमीटर सिर्फ ग्लेशियर से ढका हुआ है और अगर ये सारे ग्लेशियर पिघल जाते हैं तो वैश्विक समुद्र का स्तर 230 फीट तक बढ़ जाएगा….
और जिस स्फतार से इस वक्त ग्लेशियर पिघल रहे हैं उस हिसाब से ऐसा होने में 5 हजार साल लगेंगे..
कई देश डूब जाएंगे ग्लेशियर्स के पिघलने से बढ़ने वाला जलस्तर लंदन के टावर ब्रिज को ढकने के लिए भी काफी है……अगर ये ग्लेशियर पिघल गए तो 7 महाद्वीपों के आधे से ज्यादा हिस्से पानी में होंगे…फिर ना मालदीव होगा ना बांग्लादेश…ना मयामी ना लंदन….तुर्की की राजधानी इस्तांबुल पानी के अंदर होगी…
आस्ट्रेलिया का तटीय क्षेत्र और वहां की 80 प्रतिशत आबादी पानी में डूब जाएगी.. और यही हाल वेनस और निदरलैंड का भी होगा….अरबों खर्च कर बनाए गए दुबई के इन मैन मेड आइलैंड्स का नामो निशान तक मिट जाएगा…..
हमारी धरती पर मौजूद हर सजीव निर्जीव वस्तु पृथ्वी के संतुलन को बनाए रखने का काम करती है किसी भी एक वस्तु का असंतुलन पूरी मानवजाति को तबाही के दरवाजे पर खड़ा कर सकता है…..
और अगर ये अंसतुलन धरती पर मौजूद पानी के स्तर में हुआ तो क्या तबाही या भौकाल आएगा …आप उसकी कल्पना भी नहीं कर सकते…..
पहाड़ी और समुद्री जीवों का अस्तित्व खत्म हो जाएगा
बर्फीले पहाड़ों पर पाए जाने वाले पॉलर बियर्स और कई समुद्री जीवों का अस्तित्व पूरी तरह खत्म हो जाएगा….. और जो बच जाएंगे उन्हें नए हालतों के साथ जीना सीखना होगा…
कई देशों के जलमगन होने से अंतराष्ट्रीय स्तर पर आपातकालीन स्थिति पैदा हो जाएगी..लोग शरणार्थी बन दूसरे देशों में दर दर भटकने को मजबूर हो जाएंगे….
मीठे पानी की किल्लत
ग्लेशियर धरती पर मीठे पानी का सबसे बड़ा स्त्रोत हैं और आज भी दुनिया के 90 प्रतिशत से ज्यादा देश पीने के पानी के लिए इन पर ही निर्भर है…
और अगर ग्लेशियर ही नहीं होगें तो मीठे पानी का अस्तित्व खत्म होने लगेगा…लोगों को समुद्र का पानी फिल्टर करके पीना पड़ेगा….
कार्बन डाइन आक्साइड लेवल बढ़ जाएगा
वातावरण में कार्बन डाइ ऑक्साइड की मात्रा बहुत अधिक बढ़ जाएगी…वैसे तो ग्लेशियर को पिघलाने के लिए ही पहले बहुत कार्बन डाइ ऑक्साइड की मात्रा की जरुरत है..जिसे बढ़ाने में तो हम लगे ही हुए हैं…
वहीं ग्लेशियर के पिघलने के बाद वातावरण में ऑक्सीजन की मात्रा तो पहले जितनी ही रहेगी लेकिन कार्बन डाइऑक्साइड के बढ़ने से सांस लेना मुश्किल हो जाएगा…..बिना आर्टिफिशियल ऑक्सीजन सिलेंडर्स के हवा में सांस लेना धीरे धीरे मरने जैसा लगेगा….
कहीं बाढ़ कहीं सूखा
जब ग्लेशियर्स ही नहीं होंगे तो सूरज की किरणें भी इनसे रिफलेक्ट नहीं होंगी…और सूरज की गर्मी से समुद्र में ज्यादा बादल बनेंगे…..पूरा आसमान बादलों से भर जाएगा….पृथ्वी के क्लाइमेट में बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा… रेगिस्तान में मसूलाधार बारिश होने लगेगी…और जहां बारिश हुआ करती है वो प्रदेश सूखे पड़ जाएंगे…छोटे मोटे भूंकप के झटके भी बड़ी बड़ी सुनामी लेकर आएंगे…केदरानाथ जैसी बाढ़ की खबरें बहुत आम हो जाएंगी…ग्लेशियर्स के पिघलने के साथ ही नदियां भी सूख जाएंगी…जिसका बहुत बुरा असर खेती पर भी पड़ेगा…फूड सप्लाई बुरी तरह बर्बाद हो जाएगी…और वैश्विक स्तर पर भुखमरी छा जाएगी…
क्या सारे ग्लेशियर पिघल सकते हैं ?
रातों रात सभी ग्लेशियर्स का पिघलना तो नामुनकिन है …हां लेकिन हम इंसानों के लालच और लालसा ने इन ग्लेशियर्स के पिघलने की स्पीड जरुर बढ़ा दी है….विकास और टेक्नॉलजी की रेस में हम पृथ्वी के संतुलन को बिगाड़ते चले जा रहे हैं…फर्नीचर्स घर और दूसरे कामों के लिए हम जंगलों को तबाह कर रहे हैं…केमिकल्स का इस्तेमाल कर अपने ही हाथों नदियों को गंदे बद्बूदार नालों में बदल रहे हैं……प्लास्टिक, पेट्रोल डीजल और कैमिकल्स के जरिए हवा को गंदा कर खुद अपनी सांसें छीन रहे हैं…..और ऐसा ही चलता रहा तो वो दिन दूर नहीं जब ग्लेशियर के पिघलने के बाद होने वाली इस तबाही की कहानी सच हो जाएगी……
इंसानों के महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट्स के कारण 1880 से अब तक पृथ्वी का औसतन तापमान ओलरेडी 1.1 सेल्सियस डिग्री बढ़ चुका है …
2016 और 2017 2001 से अब तक के सबसे गर्म साल रहे हैं…और क्लाइमेट में आए इस बदलाव के चलते ग्लेशियर्स के पिघलने की रफ्तार तेज हो गई है….जिसके परिणाम स्वरुप महासागरों का जल स्तर जहां 19Th Centurary में 6 सेंटीमीटर बढ़ा था…वहीं 20th Centurary में महासागरों का जलस्तर 19 सेंटीमीटर तक बढ़ गया….
और NOAA ( National Ocianic and atmoshepric Admistrition ) की रिपोर्ट के मुताबिक 2100 तक समुद्रों का जलस्तर 2.5 मीटर ( 8 फीट ) तक बढ़ जाएगा….और अगर ऐसा होता है तो इस सदी के अंत तक मालदीव, Kiribati, Marshall islands और Tuvalu जैसे कई द्वीप पानी में पूरी तरह समा जाएंगे….जलस्तर के इस खतरे को देखते हुए मालदीव सरकार ने तो भारत और आस्ट्रेलिया सहित कई देशों में अपने लोगों के लिए जमीन देखना भी शुरु कर दिया है….पर ऐसा नहीं है कि भारत इस खतरे से बच जाएगा….
अगर ग्लेशियर इसी स्पीड से पिघलते रहे तो 2100 तक मुंबई, कोलकत्ता,विशाखापट्टनम और चेन्नई सहित भारत के 12 शहर 3 फीट तक पानी में डूब जाएंगे….ग्लेशियर्स और समुद्र से आने वाली ये तबाही वैश्विक स्तर पर 2050 तक 150 मिलियन और 2100 तक 2 बिलियन लोगों को बेघर कर देगी…
हमें क्या करना चाहिए
एक तऱफ तो हम टेक्नॉलजी के जरिए पृथ्वी की नई कहानी लिख रहे हैं वहीं दूसरी तरफ खुद अपने हाथों तबाही को दावत दे रहे हैं…खैर अभी भी स्थिति इतनी खराब नहीं हुई है कि हम संभाल ना सकें…इस तबाही को रोकाना है तो वैश्विक और राष्ट्रीय स्तर पर देशों को काम करना होगा.…
दुनिया भर के 194 स्टेट्स और यूरोपियन यूनियन ने मिलकर ग्लोबल वॉर्मिंग को रोकने के लिए 2015 में Paris Agreement में साइन किया था..
.इस एग्रीमेंट को साइन करने वाले देश अपने देश में किसी भी प्रोजेक्ट और पॉलीसी को पास करते वक्त उसके Enviromental Impacts का ध्यान रखते हैं…
और ग्रीन हाउस के उत्पादन को कम करने के लिए काम कर रहे हैं.…हालांकि ज्यादातर देश इसे कर पाने में असफल रहे हैं…
लेकिन अगर ग्लोबल वॉर्मिंग को कम करना है और आने वाली इस तबाही को रोकना है तो दुनियाभर के सभी देशों को ग्रीन हाउस गैसस का उत्सर्जन ( प्रोडक्शन ) कम करना ही होगा
और साथ ही Fossiel Fuels की जगह पूरी तरह Renewable engery पर शिफ्ट होना होगा…और अगर हम ऐसा करने में कामयाब हो भी गए तब भी हमें एक सदी से भी ज्यादा का वक्त लगेगा इस डमैज को भरने में.…
2012 में केदारनाथ में आई तबाही, 2019 में अमेजॉन के जंगल में लगी भयानक आग या फिर इस साल कनाडा जैसे ठंडे देश में हीट वे से मरते लोग
ये सब साइन है कि हम कितना कुछ तबाह कर चुके हैं और अगर अभी हमने वक्त रहते आपनी लालसा और लालच को नहीं छोड़ा और इसी तरह जंगल, नदियों और पहाड़ों को बर्बाद करते रहे तो तबाही का ये भयानक मंजर हमारी आखों के सामने होगा…
इसलिए हो सके तो क्लाइमेट चेंज के इस मुद्दे को हल्के में लेकर भुल मत जाना