
पाकिस्तानी सैनिकों को धूल चटाने वाले आम आदमी | रणछोड़ दास रबारी
फिल्म भुज द प्राइड ऑफ इंडिया का ट्रेलर तो आप सभी ने देखा ही होगा…..ये फिल्म 1971 इंडो-पाक वॉर पर बेस्ड हैं…. और इस साल देश की आजादी की 75 सालगिरह पर रिलीज हो रही है…जानता हूं आप सब इस फिल्म को लेकर काफी एक्साइटेड हैं…..अब फिल्म का ट्रेलर है ही इतना शानदार….
फिल्म भुज द प्राइड ऑफ इंडिया का वैसे तो हर कैरेक्टर कमाल का है लेकिन फिल्म के ट्रेलर में सबसे ज्यादा Curosity पैदा की है संजय दत्त के कैरेक्टर पागी रणछोड़ दास रवारी ने…….जिसे देखते ही आपके मन में भी पहला सवाल तो यही आया होगा ये है कौन ….क्या रियल में कोई ऐसा कैरेक्टर था या फिर फिल्म को मसालेदार बनाने के लिए फिल्म में ये कैरेक्टर डाला है
तो मैं आपको बता दूं कि पागी रणछोड़ दास रवारी कोई फिक्शन कैरेक्टर नहीं है…बल्कि एक रियल हीरो हैं….जिन्होंने 1971 की लड़ाई में बिना वर्दी पहने देश के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी थी….और पाकिस्तानी सैनिकों को खून के आंसू रुला दिए थे….
रणछोड़ दास रवारी एक चरवाहे थे जिनका जन्म अविभाजित भारत के पेथापुर गथडो गांव में हुआ था…..,..विभाजन के बाद रणछोड़ दास रवारी के गांव पर पाकिस्तानी आर्मी का आतंक बढ़ गया था…
पाकिस्तानी सैनिक गांवों वालों को बेवजह मारते थे और लड़कियों को उठाकर ले जाते थे…पाकिस्तानी आर्मी के आत्याचारों से तंग आकर एक दिन रणछोड़ दास रवारी ने अपने गावं वालों के साथ मिलकर कुछ पाकिस्तानी सैनिकों को मार दिया और पाकिस्तान छोड़ गुजरात के बनासकांठा में आकर बस गए….
दशकों तक ऊँटों को पालते-पालते और इधर-उधर घूमते-घूमते रणछोड़ दास के पास एक अद्भुत कला आ गई थी…. और ये कला थी पगी की….
पगी वो व्यक्ति होता है जो पैरों के निशान देखकर उस रास्ते से गुजरन वाले की पूरी डिटेल दे देता है…
रणछोड़ दास रवारी सिर्फ रेत में पड़े ऊंट के पैरों के निशान को देखकर ये बता देते थे कि ऊंट किस रास्ते से आया था …किस रास्ते गया है…कब गया है..उस पर कितना सामान लद्दा है और अब वो कहां मिलेगा…..यही नहीं रणछोड़ दास रवारी कच्छ के उन अनजान रास्तों के बारे में भी जानते थे जिनके बारे में आर्मी को भी नहीं पता था….
उनकी इसी कला को देखकर 1959 में बनासकांठा के एसपी वनराज सिंह जाला ने रणछोड़ दास रवारी को पगी पद पर नियुक्त किया….उस वक्त रणछोड़ दास रवारी की उम्र 58 साल थी ….जी हां, 58 साल….जिस उम्र में लोग दो बार रिटार्यमेंट ले लेते हैं उस उम्र में रणछोड़ दास रवारी पगी पद पर भर्ती हुए थे…रणछोड़ दास रवारी का काम पुलिस और बीएसएस के जवानों को रास्ता दिखाना था…
1965 में भारत पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ ….पाकिस्तानी सेना ने कच्छ के झारखोट पोस्ट पर हमला कर उस पर कब्जा कर लिया….और पाक की एक और बड़ी टुकड़ी उन्हें बैकअप देने पहुंचने वाली थी….
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कच्छ का बॉर्डर अब पूरी तरह असुरक्षित था….झारखोट पोस्ट को वापस लेने के लिए भारतीय सेना के 10 हजार सैनिक भेजे गए पर समस्या ये थी कि कच्छ के बॉर्डर पर पॉकिस्तानी सेना फैल चुकी थी और सीधे झारखोट पोस्ट पर जाना नामुनिकन था…
अगर सेना छुप छिपाकर पोस्ट पर जाने की कोशिश भी करती तो पाकिस्तानी सेना को पता चल जाता क्योंकि कच्छ का रण इतना खुला है कि दूर से ही पता चल जाता है कि कोई आ रहा है ऐसे में रणछोड़ दास रवारी पर 10 हजार सैनिकों को पोस्ट तक पहुंचाने की बड़ी जिम्मेदारी थी….
रणछोड़ दास रवारी ने कच्छ पर पैरों के निशान और पक्षियों की हरकतों से अनुमान लगाया कि कहां कहां पाकिस्तान ने मोर्चे खोल रखे हैं और रात के अंधरे में और दिन के उजाले में पाकिस्तानी सेना की नजरों से छुपते छुपाते 10 हजार सैनिकों को समय से 12 घंटे पहले झारखोट पोस्ट पहुंचाया…….इस जंग में भारत की जीत हुई और पाकिस्तानी सेना को कच्छ से दुम दबाकर भागना प़ड़ा….और ये सब हुआ पगी रणछोड़ दास रवारी की मदद से
1971 में भारत पाकिस्तान के बीच फिर युद्ध हुआ….इस युद्ध में पाकिस्तान ने भारत के कच्छ बॉर्डर पर सीधा हमला कर दिया था…. कच्छ के कई पोस्ट्स से सेना का संपर्क भी टूट गया था…..
सेना लोगों को सेफ जगह भेजने में लगी थी लेकिन 70 साल के रणछोड़ दास रवारी को हाथ पर हाथ रखकर ये जंग देखना गंवारा नहीं था.…फिर क्या था रणछोड़ दास रवारी ने बांसकांठा से अपना ऊंट लिया और बिना जान की परवाह किए पाकिस्तान के घर में घुस बैठे ….वहां दो दिन तक उन्होंने पाकिस्तानी सेना पर नजर रखी और लौटकर सारी जानकारी भारतीय सेना को दी..जिसके बेस पर भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना के खिलाफ रणनीति तय की..…
फिर जब भारत पाक के बीच सीधी जंग शुरु हुई तो एक वक्त ऐसा आया जब भारतीय सेना के पास सारा गोला बारुद खत्म हो चुका था उस समय रणछोड़ दास रवारी ने अपने ऊंटों पर गोला बारुद लादकर सेना तक पहुंचाया और जंग में सेना का साथ दिया….
1971 की लड़ाई में भारत की जीत हुई और पाकिस्तान के 93000 हजार सैनिकों को दुनिया के सामने सरेंडर करना पड़ा….. रणछोड़ दास रवारी ने बिना हाथों में बंदूक उठाए, सिर्फ अपने हुनर से पाकिस्तान को जो जख्म दिया, उसे पाकिस्तान कभी नहीं भुल पाया…सिर्फ एक पगी ने उनकी पूरी सेना की नींव हिला कर रख दी थी…उनकी सारी रणनीतियों पर पानी फेर दिया था….
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1971 की जीत के बाद जब पाकिस्तान के पालीनगर में तिरंगा फहराया गया तो सेनाअध्यक्ष मानेकशॉ ने अपनी जेब से 300 रु का नकद पुरस्कार रणछोड़ दास को दिया था…..
भारत पाकिस्तान में उनके योगदान के लिए उन्हें रॉष्ट्रपति पुरस्कार संग्राम पदक‘, ‘पुलिस पदक‘ और ‘ग्रीष्मकालीन सेवा पदक से भी सम्मानित किया ….कच्छ-बनासकांठा सीमा पर बने बीएसएफ के एक बॉर्डर को भी रणछोड़ दास बॉर्डर का नाम दिया गया है….
2009 में 108 साल की उम्र में रणछोड़ दास रवारी ने अपनी मर्जी से सेना से रिटार्यमेंट लिया और 2013 में 112 साल की उम्र में उनका निधन हो गया…
रणछोड़ दास रवारी साहस की वो कहानी है जिसने उम्र के दायरों को तोड़ दिया…और ये समझा दिया कि देश पर मर मिटने के लिए वर्दी पहनना जरुरी नहीं जुनून ही काफी है…
रणछोड़ दास रवारी साहस और जुनून की ये कहानी आपको कैसी लगी कमेंट करके बताइए…अगर रणछोड़ दास रवारी की कहानी ने आपको थोड़ा भी इस्पांयर किया तो इसे अपने दोस्तों के साथ भी जरुर शेयर करें